- This fisherman’s son launched a fintech startup amidst the pandemic and clocked transactions worth Rs 1 Cr
Key points:
- Chennai-based fintech startup IppoPay is a payments aggregator that enables small businesses, SMEs, freelancers, and homepreneurs in Tier II, III, and rural areas to collect payments with its POS software.
- “Ippo in Tamil means NOW. So IppoPay means Pay Now,” says Mohan K, Co-Founder and CEO of Chennai-based IppoPay.
- Mohan explains that the fintech platform lets businesses accept payments via its POS software. It also helps businesses to get invoices along with statistics on business, engagement with customers, and more. IppoPay needs no payment terminal, POS, or swiping machine. Merchants can generate QR codes using its mobile app.
- “Our platform can also be used to manage subscriptions, automate recurring billing, and get notified for all payment-related activities. There is no setup fee; we have a flat unit pricing model,” Mohan says.
- Foloosi enables businesses to get paid using QR code, payment link, or payment gateway without the need of a POS machine.
- The Chennai-based entrepreneur says some of the IppoPay’s clients include milk vendors, newspaper boys, chit fund companies, and others in Tier II and III cities in Tamil Nadu.
(Your Story, 26 September) News Link
- Startup in Bharat by Bhartiya
- Here’s How a Haryana Mom Turned One Hand-Knitted Frock Into a Multi-Crore Startup
Key points:
- One of the fondest memories from my childhood was sitting next to my grandmothers and learning how to knit and crochet. My grandmothers would gently direct me about the nuanced twists and turns of the yarn and the threads that one was working with. In the end, the result would be a beautiful muffler, a sweater, or a handkerchief with beautiful lace.
- Starting a children’s apparel business was not a pre-conceived plan but something that took its own course. Tarishi finished her Bachelor’s in Architecture degree from the Government College of Lucknow in 2009. Soon, she applied for a Master’s degree in building engineering and management (MBEM) from the School of Planning and Architecture, New Delhi and passed out in 2011.Tarishi then joined Larsen and Turbo as a senior architect and quit her job when she got married in 2013. She moved to Jaipur with her husband Nivesh and worked with a local architecture firm for two years.
- Currently, there are frocks of over 250+ designs, 100 sweaters designs, over 150 different kinds of booties, and approx 100 different kinds of caps. Additionally, they also have mufflers and accessories like hair clips, hairbands, ear muffs, and leg warmers. All the products are priced between Rs. 125 to Rs. 1500 which is considerably affordable and this is what attracted a lot of customers.
(The Better India, 26 September) News Link
- ट्रेन की वेटिंग लिस्ट में फंसे हैं? इस स्टार्टअप से करें संपर्क, मिलेगी कन्फर्म एयर टिकट
Key points:
- मुंबई स्थित यह स्टार्टअप ISB से पढ़े रोहन, IIT एलुमनाई वैभव सराफ और IIM एलुमनाई ऋषभ संघवी की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने साल 2019 में इसकी नींव रखी और 2020 से यह काम शुरू हुआ। शुरूआती महीनों में ही उनके यहाँ से 100 से भी ज्यादा प्रोटेक्शन पर्चेस हुई और लगभग 60 हज़ार से ज्यादा लोग उनकी वेबसाइट देख चुके हैं। ग्राहकों की परेशानी को हल करने के उद्देश्य से शुरू हुए इस स्टार्टअप को लगभग 700 लाख रुपये की फंडिंग मिल चुकी है।
- अगर चार्ट बनने के बाद भी आपका टिकट कन्फर्म नहीं हुआ है तो रेलोफाई से आपको उतने ही या थोड़े से ज्यादा पैसे में ट्रेन या बस की टिकट उपलब्ध कराई जाती है। इसके लिए आपको ट्रेन की वेटिंग लिस्ट या RAC में टिकट खरीदते समय ही, रेलोफाई पर प्लेन या बस की टिकट भी लॉक करनी पड़ती है। इससे बाद में अगर आपकी ट्रेन टिकट कन्फर्म न हो तो आप कम दाम में ही, जो लॉक करते समय टिकट का दाम था, उसी में प्लेन या बस की टिकट खरीद सकते हैं।
- रेलोफाई के इस मॉडल से मुंबई की दीपिका ने लगभग 18 हज़ार रुपये की बचत की। उन्होंने बताया कि उनके परिवार के छह सदस्यों ने लगभग तीन महीने पहले से ही दिल्ली से मुंबई ट्रेन टिकट बुक की थी। लेकिन उनकी टिकट कन्फर्म नहीं हुई। वह आगे कहती हैं कि तत्काल टिकट 4000 हज़ार रुपये की थी और फ्लाइट की टिकट 5000 रुपये की। पर रेलोफाई से उन्हें प्लेन की टिकट 2000 रुपये की पड़ी और तय दिन ही उनके परिवार के सभी सदस्य मुंबई पहुँच गए, वह भी समय से पहले।
(The Better India, 26 September) News Link
- This fisherman’s son launched a fintech startup amidst the pandemic and clocked transactions worth Rs 1 Cr
Key points:
- Chennai-based fintech startup IppoPay is a payments aggregator that enables small businesses, SMEs, freelancers, and homepreneurs in Tier II, III, and rural areas to collect payments with its POS software.
- “Ippo in Tamil means NOW. So IppoPay means Pay Now,” says Mohan K, Co-Founder and CEO of Chennai-based IppoPay.
- Mohan explains that the fintech platform lets businesses accept payments via its POS software. It also helps businesses to get invoices along with statistics on business, engagement with customers, and more. IppoPay needs no payment terminal, POS, or swiping machine. Merchants can generate QR codes using its mobile app.
- “Our platform can also be used to manage subscriptions, automate recurring billing, and get notified for all payment-related activities. There is no setup fee; we have a flat unit pricing model,” Mohan says.
- Foloosi enables businesses to get paid using QR code, payment link, or payment gateway without the need of a POS machine.
- The Chennai-based entrepreneur says some of the IppoPay’s clients include milk vendors, newspaper boys, chit fund companies, and others in Tier II and III cities in Tamil Nadu.
(Your Story, 26 September) News Link
- प्रोजेक्ट साईट से निकली मिट्टी से ईंटें बनाकर, घरों का निर्माण करते हैं ये आर्किटेक्ट
Key points:
- बेंगलुरु में ‘बिल्डिंग रिसोर्स हब’ के नाम से अपनी आर्किटेक्चरल फर्म चलाने वाले आशीष भुवन मूल रूप से ओडिशा से हैं। उन्होंने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, त्रिची से अपनी आर्किटेक्चर की डिग्री पूरी की। इसके बाद, उन्हें कई अच्छे प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिला। वह बताते हैं कि उन्होंने अलग-अलग फर्म के साथ काम किया और एक प्रोजेक्ट के दौरान, उन्हें सस्टेनेबल डिज़ाइन और ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट पर काम करने का मौका मिला।
- “मैं चाहता था कि जो लोकल मिस्त्री होते हैं, उन्हें प्रकृति के अनुकूल घर बनाने की समझ आए। लोग इस पर काम करें क्योंकि ज़्यादातर लोगों के घर ये स्थानीय मिस्त्री बनाते हैं। हर कोई किसी आर्किटेक्चरल फर्म के पास अपना घर बनवाने नहीं आता है। इसलिए अगर इन्हें सिखाया जाए तो कोई बात बनें,” उन्होंने आगे बताया।
- साल 2018 में उन्होंने अपनी फर्म, बिल्डिंग रिसोर्स हब की शुरुआत की। इसके ज़रिए उनके दो उद्देश्य रहे, एक तो सस्टेनेबल घरों का निर्माण और दूसरा, स्थानीय लोगों को सिखाना। उनके काम में अलग-अलग लोग उनका साथ दे रहे हैं जैसे उनकी साथी आर्किटेक्ट श्रुति मोराबाद। श्रुति कहती हैं कि वह आशीष के साथ पिछले 4 सालों से जुड़ी हुई हैं। इससे पहले वह बेंगलुरु की ही एक दूसरी आर्किटेक्चर फर्म में काम कर रही थी।
- आशीष और श्रुति अपने क्लाइंट्स की ज़रूरत को समझते हैं और साथ ही, जहाँ निर्माण करना है, वहाँ के तापमान, जलवायु आदि को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते हैं। वह क्लाइंट की ज़रूरत के हिसाब से एक डिज़ाइन तैयार करते हैं लेकिन जैसे-जैसे काम बढ़ता है तो वह साधनों की उपलब्धता के आधार पर भी डिज़ाइन में थोड़ी फेर-बदल करते हैं। अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के लिए वह अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल करते हैं।
(The Better India, 26 September 2020) News Link
- प्रोजेक्ट साईट से निकली मिट्टी से ईंटें बनाकर, घरों का निर्माण करते हैं ये आर्किटेक्ट
Key points:
- बेंगलुरु में ‘बिल्डिंग रिसोर्स हब’ के नाम से अपनी आर्किटेक्चरल फर्म चलाने वाले आशीष भुवन मूल रूप से ओडिशा से हैं। उन्होंने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, त्रिची से अपनी आर्किटेक्चर की डिग्री पूरी की। इसके बाद, उन्हें कई अच्छे प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिला। वह बताते हैं कि उन्होंने अलग-अलग फर्म के साथ काम किया और एक प्रोजेक्ट के दौरान, उन्हें सस्टेनेबल डिज़ाइन और ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट पर काम करने का मौका मिला।
- “मैं चाहता था कि जो लोकल मिस्त्री होते हैं, उन्हें प्रकृति के अनुकूल घर बनाने की समझ आए। लोग इस पर काम करें क्योंकि ज़्यादातर लोगों के घर ये स्थानीय मिस्त्री बनाते हैं। हर कोई किसी आर्किटेक्चरल फर्म के पास अपना घर बनवाने नहीं आता है। इसलिए अगर इन्हें सिखाया जाए तो कोई बात बनें,” उन्होंने आगे बताया।
- साल 2018 में उन्होंने अपनी फर्म, बिल्डिंग रिसोर्स हब की शुरुआत की। इसके ज़रिए उनके दो उद्देश्य रहे, एक तो सस्टेनेबल घरों का निर्माण और दूसरा, स्थानीय लोगों को सिखाना। उनके काम में अलग-अलग लोग उनका साथ दे रहे हैं जैसे उनकी साथी आर्किटेक्ट श्रुति मोराबाद। श्रुति कहती हैं कि वह आशीष के साथ पिछले 4 सालों से जुड़ी हुई हैं। इससे पहले वह बेंगलुरु की ही एक दूसरी आर्किटेक्चर फर्म में काम कर रही थी।
- आशीष और श्रुति अपने क्लाइंट्स की ज़रूरत को समझते हैं और साथ ही, जहाँ निर्माण करना है, वहाँ के तापमान, जलवायु आदि को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते हैं। वह क्लाइंट की ज़रूरत के हिसाब से एक डिज़ाइन तैयार करते हैं लेकिन जैसे-जैसे काम बढ़ता है तो वह साधनों की उपलब्धता के आधार पर भी डिज़ाइन में थोड़ी फेर-बदल करते हैं। अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के लिए वह अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल करते हैं।
(The Better India, 26 September 2020) News Link
- Self-reliance
- दिल्ली: व्हीलचेयर पर बैठे–बैठे फूलों का सफल व्यवसाय चलातीं हैं यह 80 वर्षीया दादी
Key points:
- “लॉकडाउन के पहले ही महीने से मुझे ग्राहकों के फोन आने लगे, उनमें से कुछ लोगों ने बताया कि उदासी भरे समय में फूल ही उन्हें खुशी देते हैं। लोगों के कॉल से मैं काफी उत्साहित हुई और मैंने अपने ग्राहकों को फूल बेचने के साथ ही डिलीवरी सर्विस देनी भी शुरू कर दी।” -स्वदेश चड्ढा
- हर हफ्ते रानी Delhi-NCR के कई घरों में लगभग 100 गुच्छे फूल भेजती हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है।
(The Better India, 26 September 2020) News Link
- पिता के कैंसर ने किसान को जैविक खेती के लिए किया प्रेरित, सालाना हुआ 27 लाख का फायदा
Key points:
- सूरत के रामचंद्र पटेल की जीरो बजट नैचुरल फॉर्मिंग तकनीक से खेती में इनपुट लागत काफी कम हुई और उन्हें रिटर्न को बढ़ाने में मदद मिली। हर साल उन्हें एक एकड़ भूमि से डेढ़ लाख रुपए और 18 एकड़ से 27 लाख रुपये का मुनाफा होता है।
- रामचंद्र, मुंबई के अस्पताल में लगभग 13 बार गए और तब जाकर उन्हें डॉक्टरों से अपने पिता की बीमारी का कारण पता चला। उन्हें पता चला कि अच्छी उपज के लिए फसलों पर रसायन और हानिकारक कीटनाशक के छिड़काव के कारण वह कैंसर की चपेट में आए।यह सुनकर रामचंद्र की आंखें खुल गई। उनके पिता ने कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के कारण दम तोड़ दिया लेकिन रामचंद्र ने रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक तरीके से खेती करने का फैसला किया। 1991 से उन्होंने गैर-कृषि भूमि के एक प्लॉट पर जीरो बजट नैचुरल फॉर्मिंग (ZBNF) अपनाते हुए काम करना शुरू किया और इसे एक उपजाऊ जमीन में बदल दिया।
- रामचंद्र ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरी इनपुट लागत शून्य है। मेरे खेत की मिट्टी काफी उपजाऊ है। जिसमें अधिक पैदावार होती है और मुनाफा भी अधिक होता है। सच कहूँ तो अब मेरा इम्युनिटी सिस्टम पहले से बेहतर हुआ है और अब मैं अपने ग्राहकों को जहर नहीं खिला रहा हूँ।”
- रामचंद्र के खेत में केला, हल्दी, गन्ना, अमरूद, लीची, पर्पल यम, पारंपरिक चावल की किस्में, फिंगर बाजरा, गेहूँ आदि फसलें उगायी जाती हैं।
(The Better India, 26 September 2020) News Link
- गुरुग्राम: जॉब छोड़कर घर से शुरू किया बेकरी बिज़नेस, अब प्रतिदिन कमातीं हैं 10 हज़ार रूपये
Key points:
- सोशल मीडिया के जमाने में दुनिया अपनी मुट्ठी में हो गई है। ऐसे में घर से बिजनेस शुरू करना बहुत आसान हो गया है। लेकिन कुछ पल थमकर जरा उस वक्त के बारे में सोचिए और कल्पना कीजिए जब सोशल मीडिया नहीं था। उस वक्त आपके काम को लाइक और शेयर करने वाला कोई नेटवर्क मौजूद नहीं था। ऐसे ही दौर में गुरुग्राम की रहने वाली इला प्रकाश सिंह ने अपनी बेकरी का काम शुरू किया था।
- इला ने लगभग 5,000 रुपये के निवेश से अपना बिजनेश शुरू किया था और आज वह करीब 10,000 रुपये हर दिन कमाती हैं। आज वह केक, कुकीज, चॉकलेट्स, ग्लूटेन फ्री ब्रेड, डेसर्ट, आर्टिसनल ब्रेड जैसे बेकरी प्रोडक्ट की 40 से अधिक किस्में समेत अन्य स्वादिष्ट आइटम जैसे पैटी, स्टफ्ड बन्स, पिज्जा और गिफ्ट हैम्पर की पूरे एनसीआर में डिलीवरी करती हैं। (The Better India, 26 September 2020) News Link
- प्रोजेक्ट साईट से निकली मिट्टी से ईंटें बनाकर, घरों का निर्माण करते हैं ये आर्किटेक्ट
Key points:
- बेंगलुरु में ‘बिल्डिंग रिसोर्स हब’ के नाम से अपनी आर्किटेक्चरल फर्म चलाने वाले आशीष भुवन मूल रूप से ओडिशा से हैं। उन्होंने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, त्रिची से अपनी आर्किटेक्चर की डिग्री पूरी की। इसके बाद, उन्हें कई अच्छे प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिला। वह बताते हैं कि उन्होंने अलग-अलग फर्म के साथ काम किया और एक प्रोजेक्ट के दौरान, उन्हें सस्टेनेबल डिज़ाइन और ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट पर काम करने का मौका मिला।
- “मैं चाहता था कि जो लोकल मिस्त्री होते हैं, उन्हें प्रकृति के अनुकूल घर बनाने की समझ आए। लोग इस पर काम करें क्योंकि ज़्यादातर लोगों के घर ये स्थानीय मिस्त्री बनाते हैं। हर कोई किसी आर्किटेक्चरल फर्म के पास अपना घर बनवाने नहीं आता है। इसलिए अगर इन्हें सिखाया जाए तो कोई बात बनें,” उन्होंने आगे बताया।
- साल 2018 में उन्होंने अपनी फर्म, बिल्डिंग रिसोर्स हब की शुरुआत की। इसके ज़रिए उनके दो उद्देश्य रहे, एक तो सस्टेनेबल घरों का निर्माण और दूसरा, स्थानीय लोगों को सिखाना। उनके काम में अलग-अलग लोग उनका साथ दे रहे हैं जैसे उनकी साथी आर्किटेक्ट श्रुति मोराबाद। श्रुति कहती हैं कि वह आशीष के साथ पिछले 4 सालों से जुड़ी हुई हैं। इससे पहले वह बेंगलुरु की ही एक दूसरी आर्किटेक्चर फर्म में काम कर रही थी।
- आशीष और श्रुति अपने क्लाइंट्स की ज़रूरत को समझते हैं और साथ ही, जहाँ निर्माण करना है, वहाँ के तापमान, जलवायु आदि को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते हैं। वह क्लाइंट की ज़रूरत के हिसाब से एक डिज़ाइन तैयार करते हैं लेकिन जैसे-जैसे काम बढ़ता है तो वह साधनों की उपलब्धता के आधार पर भी डिज़ाइन में थोड़ी फेर-बदल करते हैं। अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के लिए वह अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल करते हैं।
(The Better India, 26 September 2020) News Link