भारतीय आर्थिक चिंतन (Philosophy of Hindu Economics)

(The article is a Reader’s Contribution on Philosophy of Hindu Economics)

– By Suhas Vaidya

भारतीय अर्थव्यवस्था करवट बदल रही है| हम भारतीय  “मेड इन इंडिया” (Made in India ) से गर्व का भाव महसूस कर रहे है | हर घर में स्वदेशी प्रोडक्ट्स को पसदं किया जा रहा है और प्राथमिकता भी मिल रही है|कई  भारतीय ब्रांड्स तथा कंपनी मल्टीनेशनल है …ऐसे में  कुछ साल पहले जो चर्चा होती थी की क्या स्वदेशी प्रासंगिक (Relevant)  है ? यह सवाल ही अब irrelevant  हो गया है  ! जो थोडासा द्वंद्व मन में है वो शायद ये की  पहुंच (approach)  क्या हो ? पूर्ण ग्लोबल (Global) ? पूर्ण लोकल ? या Global + Local ?  यानि  ‘Glocal’ ?

1.हमारा हिन्दू वैश्विक दर्शन क्या है ?

विश्व की व्यवस्था को  समझ ने की सोच, व्यक्ति और समाज का नाता (संबंध या connection), व्यक्ति के सुख की कल्पना  और  सुख प्राप्ति का साधन कैसा हो, क्या हो, इसकी मान्यता क्या हो? हमारा हिन्दू वैश्विक दर्शन कैसा भिन्न है?स्वाभविक रूप से अर्थ शास्त्र के सिद्धांत (Economics Philosophy), दृध्टिकोन (Perspective) और  मार्ग (means) कैसे भिन्न है |

हिन्दू वैश्विक दर्शन कहता है की “संपूर्ण विश्व एक तत्त्व है” | सर्व खल्विदं ब्रह्मअर्थात “ALL IS ONE” and Not ‘ALL ARE ONE’. पाश्चिमात्य  विचार अनेकत्व के आधार पर है | इसलिए समग्रता का अभाव दिखता है |

2. व्यक्ति और समाज

व्यक्ति समाज का अंगीभूत घटक |  भारतीय (वैज्ञानिक) ऋषियो ने  व्यक्ति और समाज के बारें में गहरा चिंतन किया|  उनके चिंतन के अनुसार मानवता  या समाज एक शरीर रूप है तथा व्यक्ति उसका एक अंग है |

अर्थात इस अंगांगी भाव के कारण व्यक्ति और समाज में कोई द्वंद्व नहीं (no dichotomy or duality), व्यक्ति समाज का अविभाज्य (inseparable) घटक है (component) |

पाश्चिमात्य चिंतको की सोच में व्यक्ति केंद्र है| व्यक्ति और समाज का रिश्ता  क्लब (Club) और क्लब मेंबर की तरह है | समाज एक क्लब है और व्यक्ति एक मेंबर इसलिए “Social Contract Theory” के अनुसार व्यक्ति के अधिकार है (समाज के खिलाफ?), व्यक्ति को प्राथमिकता है |

3.समाज के सुख में व्यक्ति का सुख है

भारतीय चिंतको ने इस बात पर जोर दिया की समाज के सुख में व्यक्ति का सुख निहित (vested) है | सभी   मिलके  एक   दूसरे  के सुख का विचार करें | ” सब ” की परिभाषा में समस्त प्राणी और  पर्यावरण  (environment) भी शामिल है | इसी कारण “दोहन” (milking) को अनुमति है परन्तु “शोषण” (exploitation) मंजूर नहीं |  Nature should be milked and not exploited.

क्या शरीर का कोई अंग दूसरे अंग का शोषण कर सकता है? हाथ पैर का कभी शोषण नहीं  करता  बल्कि पैर  में  कांटा (thorn) घुसे तो हाथ  आगे बढ़ कर काटा निकलता  और आँखों  में  आँसू होते  है यह अंगांगी भाव है |

पाश्चिमात्य विचार मानव केंद्रित होने के कारण  सुख की परिभाषा  भिन्न है|  ये सृष्टि  मेरे लिए , मेरे आनंद के लिए  अर्थात  उपभोग (pleasure / desire) लिए है | उपभोग में ही सुख है और मैं अपने सुख के लिए औरों  का शोषण  (exploit) कर सकता हूँ |

4.साध्य और साधन शुचिता 

भारतीय अर्थ विचार के अनुसार साध्य और साधन शुचिता का महत्व है | अपने परिवार तथा समाज के भलाई के लिए अर्थार्जन आवश्यक है| लेकिन वह धन अच्छे कर्म से, मेहनत से कमाना अपेक्षित है | कर्म भगवान की  पूजा के समान है और पूजा की सामुग्री भी पवित्र हो | सेवा में सुख है  इसलिए  समाज की सेवा के लिए  अर्थार्जन  ये  प्रेरणा (motive) है |

पाश्चिमात्य आर्थिक  विचार में  अधिकाधिक लाभ (profit) ये प्रेरणा है| उपभोग में सुख है और ज्यादा उपभोग के लिए साधन (पैसा या दौलत) चाहिए| ज्यादा पैसा प्राप्त करने हेतू ज्यादा प्रॉफिट (profit) कमाना चाहिए (come what may meet your target margin!) मतलब ज्यादा प्रॉफिट के लिए कृत्रिम अभाव (contrived scarcity) हो तो भी ठीक है, सप्लाई (supply) कम है तो ही ज्यादा कीमत मिलेगी (Law of Demand Vs Supply) |

5.समृद्धि और विपुलता (Economy of abundance & Declining prices): समृद्धि और विपुलता के लिए, कीमत कम होती है तो सभी लोगों को वस्तू  प्राप्त होती है और हम आनंदित होते है | यह भारतीय विचार है |

पाश्चिमात्य विचार में कीमते कम हो तो इसका मतलब आर्थिक मंदी का दौर है |
ये विचार “Economy of rising prices” तत्त्व पर आधारित है |

6.संपत्ति की परिभाषा भी भिन्न है : हमारे विचार में संपत्ति सब वस्तू और सेवा  को जोड़कर  बनती है | पाश्चिमात्य विचार में बाजार मूल्य को अधिक महत्व है |उदाहरण (Illustrative Example on Wealth):

भारतीय विचार                                                                      पाश्चिमात्य विचार
Year 1   100 kg Sugar production                               100 kg x INR 5/Kg = 500 INR
Year 2   200 Kg Sugar Production                              200 kg x INR 2/Kg = 400 INR
(Wealth increased)                                                        (Wealth decreased)

Year 3   50 Kg Sugar Production                                  50 Kg X INR 12/Kg = 600 INR
(Wealth decreased)                                                         (Wealth Increased)

***

अर्थ एक पुरुषार्थ (wealth is one of the four human pursuits) – धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष ये चार पुरुषार्थ है |

(The four purushārthas are Dharma (righteousness), Artha (prosperity with values), Kama (pleasure without violating dharma) and Moksha (self-realization / emancipation / spiritual liberation)).

हिन्दू विचार में अर्थ ये प्रमुख पुरुषार्थ है | किन्तु धर्म (कर्त्तव्य) के आधार पर अर्थ का पुरुषार्थ अपेक्षित है | व्यक्ति का अपने परिवार के प्रति समाज के प्रति क्या उत्तरदायित्व (accountable) है  इसका विचार हर व्यक्ति को करना है | समय पर और उचित कर देना, सही कर्म से अपना और परिवार का भाग्य बदलना अपेक्षित है| श्रम को प्रतिष्ठा प्राप्त हो, समाज  के हित का  कोई भी  काम  हल्क़े दर्जे का नहीं | वाइट कलर  जॉब (white collar job) और ब्लू कलर जॉब (blue collar job) नहीं … सभी श्रमिक है | धर्म आसरा लिए मोक्ष काम अर्थ हो |

7.उपभोक्तावाद अपने संस्कृति से मेल नहीं रखता

Socialism, Capitalism और Communism का गोत्र एक ही है और वो है उपभोक्तावाद (Materialism)|

हिन्दू संस्कृति में दूसरे का विचार (“मैं” नहीं “तू” ) प्रथम है, कर्त्तव्य प्रधान है  और  पर्यावरण के प्रति कृतज्ञता भाव रखती है |  भारतीय जीवन दृष्टि “अधिकाधिक” (greed) नहीं  आवश्यकता (need) के अनुसार (केवल उतनाही) संयमित उपभोग का दृषिटकोण रखती है |

ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।। – ईशोपनिषद् (From Isha Upanishad)

IsA vAsyam idam sarvam yat kincha jagatyAm jagat |
tena tyaktEna bhunjIthA mA grudhah kasya svid dhanam ||

(tena tyaktena = by renunciation; bhunjIthAh = support (yourself)

By the Lord Hari is enveloped all that moves in the moving world.
By renouncing this, find your fulfilments.
Do not covet the possessions of others.

***

8.स्वदेशी का युगानुकूल अविष्कार

लोकमान्य तिलक ने  राष्ट्रीय शिक्षण को प्राथमिकता  देकर  भारतीय शिक्षण पद्धति के विकास में योगदान दिया | (Nationalistic Education based on Bharatiya Values and Sanskar) उन्होंने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार का आवाहन किया था | महात्मा गांधीजी ने  स्वदेशी को बढ़ावा देने हेतु  खादी का पर्याय दिया|

१९९० (1990) के दशक में “स्वदेशी जागरण मंच” ने  सिर्फ भारतीय  वस्तु (products) खरीदने का  आवाहन किया था |

  • C-DAC द्वारा परम कंप्यूटर की निर्मिति, ISRO द्वारा भारतीय बनावटी से उपग्रह का निर्माण और भारतीय क्रायोजेनिक इंजन  का निर्माण  इन उपलब्धियों से सभी भारतीय गौरवान्वित महसूस करने लगे |
  • बाबा रामदेव जी  और पतंजलि के माध्यम से  योग, आयुर्वेद और  उत्तम दर्जे के स्वदेशी वस्तु का अभूतपूर्व  मिलाप हुआ  है |
  • श्रीश्री  रविशंकर और बाबा रामदेवजी साथ जोड़कर हिन्दू  जीवन पद्धति को समस्त दुनिया के सामने एक पर्याय के रूप में प्रस्तुत किया है | हिन्दू जीवन पध्दति के बारें में पूरी दुनिया में आकर्षण है और लोग इसे अपना रहे है |

धर्में नैव प्रजा सर्वे रक्षन्ति स्म परस्परं | (धर्म के आधार पर लोग एक दूसरे के हितों की (आर्थिक हितों की भी ) रक्षा करें | रामराज्य की कल्पना यही थी | स्वदेशी यानि आर्थिक स्वावलंबन (Economic Sovereignty/ Self-reliance), स्वदेशी यानि परस्परावलंबन (Economic Interdependence)| स्वदेशी यानि व्यवस्था का, जीवन शैली का युगानुकूल अविष्कार …यही हमारा आर्थिक चिंतन है |

यतो धर्म ततो जय – जहाँ लोग धर्म के साथ है (धर्मानुकूल जीवन जीते है), वहॉं विजय निश्चित है |

सुहास वैद्य 

बंगळुरू , १३ November २०१६

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