आओ फिर से दिया जलाएँ Leave a reply आओ फिर से दिया जलाएँ भरी दुपहरी में अँधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ें- बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ हम पड़ाव को समझे मंज़िल लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल वर्त्तमान के मोहजाल में- आने वाला कल न भुलाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ। आहुति बाकी यज्ञ अधूरा अपनों के विघ्नों ने घेरा अंतिम जय का वज़्र बनाने- नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ Share this:FacebookTwitterEmailWhatsAppMoreLinkedInRedditTumblrPrintPinterestTelegramPocketSkypeLike this:Like Loading... Related