- Meet 5 Dalit feminist writers who are sparking conversations on casteism in the country
Key points:
- Gender and identity politics is important while discussing the experiences of Dalit women in the country. Here are five women who are taking the conversations forward with their writings.
- Despite many developments and rise in the standard of living, India is not too modern to believe and practice equality for all, as enshrined in the constitution of the world’s largest democracy. In many parts of India, society does not see lower castes and Dalit people as equals. They are bound by traditional roles they are supposed to play in a society, according to ancient texts. Discussions around caste-based atrocities became a pressing issue after four upper caste men were accused of raping a 19-year-old Dalit woman who succumbed to her injuries. The victim’s body was cremated by the police without her family’s consent and this created a huge furore.
- Many argue that the horror of injustice goes to show a lack of dignity and exploitation of lower caste people, especially women in India.
(Your Story, 17 October 2020) News Link
- Startup in Bharat by Bhartiya
- बेंगलुरु: नारियल की सूखी पड़ी पत्तियों से हर रोज़ 10,000 स्ट्रॉ बनाता है यह स्टार्टअप
Key points:
- Evlogia Eco Care, बेंगलुरू की एक स्टार्टअप कंपनी है। इसकी शुरूआत 2018 में हुई थी। यह संस्था नारियल के सूखे पत्तों से ‘Kokos Leafy Straws’ नाम से पर्यावरण के अनुकूल स्ट्रॉ बनाती है।
- कच्चे माल को तैयार करने से लेकर अंतिम उत्पाद की पैकेजिंग तक का पूरा काम महिलाएं ही करती हैं। मणिगंदन कहते हैं कि स्ट्रॉ को आधे घंटे तक गर्म पेय पदार्थों में और 6 घंटे तक ठंडे पेय पदार्थों में रखा जा सकता है।
- स्टार्टअप के संस्थापक मणिगंदन कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर चुके हैं। 2016 में उन्होंने कॉर्पोरेट सेक्टर छोड़कर उद्यमी बनने का फैसला किया। उस दौरान उन्होंने टेनको नाम की एक कंपनी शुरू की। यह कंपनी नारियल को ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर बेचती थी।
- मणिगंदन ने कंपनी की स्थापना 2018 में अपनी पत्नी राधा मनीगंदन के साथ मिलकर की थी। इस दंपत्ति ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम द्वारा समर्थित सीड इनवेस्टमेंट से इसे स्थापित किया था। जनवरी 2019 में केवल एक कर्मचारी के साथ स्ट्रॉ का उत्पादन शुरू हुआ। आज इस कंपनी में 15 कर्मचारी काम करते हैं।
- पहले, कंपनी 100 स्ट्रॉ प्रतिदिन बनाती थी। लेकिन अब हर दिन 10,000 स्ट्रॉ बनाया जा रहे हैं। (The Better India, 17 October 2020) News Link
- Bengaluru Startup’s ‘Charzer’ Lets Electric Bikes Charge in Stores For Rs 25/Hour
Key points:
- By the end of October 2020, 100 IoT-powered electric vehicle charging stations will go live in Bengaluru, thanks to ‘Charzer’.
- By the end of October 2020, 100 IoT-powered electric vehicle charging stations will go live in Bengaluru thanks to ‘Charzer’, a startup established by Sameer and his team in February 2020. Called Kirana Charzers, the Bengaluru-based startup claims these low cost, compact and low maintenance EV charging stations can be installed at small shops and by individuals, which will allow them to earn an additional source of income.
- The startup began developing the Kirana Charzer in the middle of last year. After months of research and developing prototypes, they launched the Kirana Charzer in February 2020 at MOVE, a global platform for major players across the transport industry, in London.
- “The response there was overwhelming. In fact, we weren’t ready for it. We had done market surveys and already sold a few Kirana Charzers, but weren’t expecting the sort of response we got there. Before we knew it, our first batch of 200 charging stations was already sold out. We had made only 200 because we didn’t have access to large scale manufacturing. Now, we have orders for 2,000+ Kirana Charzers still pending,” he says.
(The Better India, 17 October 2020) News Link
- [The Turning Point] Understanding the support agent market led these entrepreneurs to start data ecosystem platform Aiisma
Key points:
- The Turning Point is a series of short articles that focuses on the moment when an entrepreneur hit upon their winning idea. Today, we look at Las Vegas-based marketing research startup Aiisma.
- Founded in 2018, the startup rewards users for anonymously and consensually sharing their data with businesses to improve their products.
- “When we started Aiisma in 2018, we had to zero in on how we can create a tool, an app, a software or a program that returns the power and control of data back to individuals with the ability to decide what data they want to share, when they want to share, and how to monetise,” says Nicholas.
- According to the founders, the startup has over 6,000 members at present. The user base is highest in India followed by UAE and then the Philippines.
(The Better India, 17 October 2020) News Link
- This banking intelligence startup is making due diligence and onboarding simpler for banks and NBFCs
Key points:
- Mumbai-based Karza Technologies is an analytics, business intelligence, and automation platform that aggregates and analyses information to provide onboarding, due diligence, monitoring, and skip tracing solutions for the BFSI sector.
- Keen to change this, college friends Omkar Shrihatti and Gaurav Samdaria in 2015 started business intelligence solution provider Karza Technologies in Mumbai.
- Karza focuses on minimising inefficiencies in the BFSI ecosystem using Big Data and AI. The core problem it solves for includes scattered and unstructured data. The platform collects information from all available scattered data and identifies relevant sets. The data is stitched in one place using a unique identifier, the Karza ID. The dashboard allows clients to view the data in an easy, consumable manner.
- Karza processes over 10 million transactions per month and creates custom pricing models, depending on the scope of work involved.
(Your Story, 17 October 2020) News Link
- ‘ब्लॉग से शुरू हुई थी तीन दोस्तों ‘गाथा’, आज करते हैं करोड़ों का कारोबार
Key points:
- साल 2013 में सुमिरन ने अपने दोस्त शिवानी धर और हिमांशु खार के साथ मिलकर हैंडिक्राफ्ट को बढ़ावा देने के लिए 5 लाख रुपए की लागत से अपनी ई-कॉमर्स कंपनी ‘गाथा’ को शुरू किया था। आज यह कंपनी हर साल करोड़ों का कारोबार करती है।
- भारतीय हस्तकला की लोकप्रियता पूरी दुनिया में है, लेकिन हाल के वर्षों में उद्योगों में मशीनों के बढ़ते उपयोग के कारण इसकी चमक फीकी पड़ने लगी है। लेकिन, सुमिरन पांड्या ने भारतीय हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसी पहल की शुरूआत की, जिससे कारीगरों को अधिकतम लाभ सुनिश्चित होने के साथ ही वह खुद भी करोड़ों की कमाई कर रहे हैं।
- सुमिरन ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर जिस कारोबार को महज 5 लाख रुपए से शुरू किया था, उसके जरिए आज वह हर साल करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। खास बात यह है कि गाथा ने यह मकाम खुद ही हासिल किया है और उन्हें अब तक किसी निवेशक की जरूरत नहीं पड़ी।
- फिलहाल, उनकी कंपनी में 15 से अधिक लोग नौकरी करते हैं, जबकि देश के करीब 400 कारीगर उनसे प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। गाथा स्टोर पर साड़ी, होम डेकोर, पेंटिंग्स, श्रृंगार आदि जैसी कई वस्तुएं उपलब्ध हैं।
- आज उनके ग्राहक दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू जैसे देश के कई बड़े शहरों के अलावा, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया जैसे 20 से अधिक देशों में भी हैं।
- सुमिरन कहते हैं, “हमारे कारोबार में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ग्राहकों को असली और नकली हस्तकला के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। आज मशीन से बने हुए कपड़े में और हाथ से बने हुए कपड़े में, फर्क पता नहीं चलता है। लेकिन, मशीन से बने हुए कपड़े की कीमत कम होती है, जिसे वजह से हस्तशिल्प को काफी नुकसान होता है। लेकिन, राहत की बात है कि पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है और हाथ से निर्मित उत्पादों की माँग विदेशों में भी काफी बढ़ी है।“
(The Better India, 17 October 2020) News Link
- मिलिए ‘मखाना मैन ऑफ इंडिया’ सत्यजीत सिंह से, जिन्होंने बिहार में बदल दी मखाना खेती की तस्वीर
Key points:
- मखाना को सुपरफूड के रूप में जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज दुनिया में कुल मखाने का 90 फीसदी उत्पादन बिहार में होता है? बिहार में मखाना खेती को लेकर एक क्रांति की शुरुआत करने वाले सत्यजीत सिंह हैं, जिन्हें ‘मखाना मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से भी जाना जाता है। सत्यजीत आज बिहार में 50 फीसदी मखाना उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं और अनुमान है कि वह अगले 2-3 वर्षों में कुल मखाना उत्पादन में 70 से 75 फीसदी योगदान देने में सफल होंगे।
- साकेत के अधिकांश किसान साथी गेहूँ और धान की खेती करते हैं, लेकिन उन्होंने मखाना की खेती करने का फैसला किया। इससे साकेत को न सिर्फ अपने परिवार को कर्ज से उबारने में मदद मिली, बल्कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में भी मदद मिली।
- साकेत मखाना के बीज को बेच कर सालाना 3.5 लाख रूपये कमाते हैं और फिर बचे हुए बीजों को कुछ दिनों के बाद 30% अधिक मूल्य पर बेचते हैं। इस तरह हर साल उन्हें 4.5 लाख रूपए की कमाई होती है।
- शक्ति सुधा के प्रयासों से, स्थानीय बाजारों में मखाने का दाम 40 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 400 रुपये प्रति किलो हो गया। फलस्वरूप, जो पहल महज 400 किसानों के साथ शुरू हुआ था, आज उससे 12,000 से अधिक किसान जुड़ चुके हैं।
- सत्यजीत कहते हैं कि यह हमारे शोध कार्यों का नतीजा है कि शक्ति सुधा इस बदलाव को लाने में सक्षम हुई। इससे मखाना को सिर्फ स्नैक्स के बजाय एक सुपरफूड के रूप में बाजार में लाने में मदद मिली है। गत 19 वर्षों के दौरान मखाना बिहार के किसानों के लिए एक नकदी फसल के रूप में विकसित हुआ है। शायद यह इसी का नतीजा है कि जहाँ पहले सिर्फ 1,500 हेक्टेयर जमीन पर मखाने की खेती होती थी अब 16,000 हेक्टेयर पर होती है। सत्यजीत का अंदाजा है कि अगले वर्ष तक बिहार में 25,000 हेक्टेयर जमीन पर मखाने की खेती होगी।
(The Better India, 17 October 2020) News Link
- हैदराबाद: मंदिरों से फूल इकट्ठा कर उनसे अगरबत्ती, साबुन आदि बना रहीं हैं ये सहेलियाँ
Key points:
- हैदराबाद में रहने वाली माया विवेक और मीनल दालमिया, Holy Waste ब्रांड के अंतर्गत फूलों को प्रोसेस करके अगरबत्ती, धूपबत्ती, खाद और साबुन जैसे उत्पाद बना रहीं हैं!
- माया और मीनल ने सबसे पहले एक मंदिर में बात की और वहाँ से फूल आदि को इकट्ठा करके घर पर लाने लगीं। उन्होंने पहले अपने घर पर इनकी प्रोसेसिंग की। जैविक खाद बनाना उन्हें आता था इसलिए इसमें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने अगरबत्ती बनाने पर काम किया। घर पर वह छत पर फूलों को सुखातीं और फिर इन्हें मिक्सर में पिसती और फिर आगे की प्रक्रिया करतीं। एक-दो बार के ट्रायल से जब वह अगरबत्ती बनाने में सफल रहीं तो उन्होंने इसमें आगे बढ़ने की सोची।
- सभी मंदिरों में उन्होंने अपने डस्टबिन रखवाए हुए हैं और इन्हें प्रोसेसिंग यूनिट तक लाने के लिए कामगार लगाए हैं। मंदिरों के अलावा शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में भी बचने वाले फ्लोरल वेस्ट को वह इकट्ठा करके प्रोडक्ट्स बनाने में लगा रही हैं। हर दिन वह लगभग 200 किलो फ्लोरल वेस्ट को नदी-नाले में जाने से रोक रही हैं।
- उनके स्टार्टअप को हैदराबाद के संगठन, a-IDEA (Association for Innovation Development of Entrepreneurship in Agriculture) द्वारा इन्क्यूबेशन मिला है। पिछले साल, उन्हें ग्रीन इंडिया अवॉर्ड्स 2019 के इको-आइडियाज के अंतर्गत बेस्ट ग्रीन स्टार्टअप अवॉर्ड भी मिला है।
- माया कहतीं हैं कि उनका उद्देश्य हमेशा से लोगों और पर्यावरण के लिए कुछ करने का था। इस स्टार्टअप के ज़रिए वह पर्यावरण के लिए भी काम कर रही हैं और साथ ही, ग्रामीण, ज़रूरतमंद महिलाओं को काम देकर समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही हैं।
(The Better India, 17 October 2020) News Link
- दादी का बनाया खाना लोगों तक पहुँचाने के लिए छोड़ी नौकरी, अब 1.5 करोड़ रुपये है सालाना आय
Key points:
- दादी-चाची के हाथों से बने भोजन का स्वाद ही कुछ और होता है। इसी स्वादिष्ट स्वाद को घर-घर तक पहुँचाने के लिए मुरली गुंडन्ना ने बेंगलुरु में अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने “फ़ूड बॉक्स” नाम से एक स्टार्टअप की शुरूआत की जहाँ से घर का पका खाना लिया जा सकता है।
- मुरली कहते हैं, “मेरे बॉस ने इसे बहुत ही सकरात्मक तरीके से लिया और उन्होंने मुझे तीन महीने पेड लीव देने की पेशकश की।” उन्होंने सप्ताह में 10 फूड बॉक्स बेचने से शुरूआत की और अब वह एक दिन में हज़ारों फूड बॉक्स बेचते हैं। मुरली इसका श्रेय अपनी दादी और चाची को देते हैं। मुरली के स्टार्टअप की यह कहानी बड़ी दिलचस्प है।
- शुरूआती दिनों में मुरली एक दिन में 15-20 बॉक्स बेचते थे जबकि आज की तारीख में वह एक हफ्ते में 2,000 बॉक्स बेचते हैं।
- इस बिजनेस को शुरू हुए पाँच साल हो चुके हैं। अब फूड बॉक्स के साथ 27 पेशेवरों और रसोइयों की एक टीम है। ग्राहकों की संख्या 30 हजार के करीब पहुँच चुकी है।
- एक बिजनेस जिसके लिए शुरूआती हफ्तों के लिए किराने का सामान खरीदने के अलावा कोई निवेश नहीं किया गया था और छह महीने तक जिसका मुनाफा शून्य रहा, अब एक साल में लगभग 1.5 करोड़ रुपये का राजस्व कमाता है।
(The Better India, 17 October 2020) News Link